शिव
"शिव"
वह
न हर्ष है, न शोक
न जय है, न पराजय
न लाभ है, न हानि
न ही पृथ्वी, न आकाश
न जल, न अग्नि
वह तो जीवन और मृत्यु भी नहीं है।
विचार से परे वह शून्य भी तो नहीं है।
जन्म तो फिर कहें ही क्यों, क्योंकि वह तो अजन्मा भी नहीं है।
कुछ ने कहा वह गौर वर्ण है, कुछ ने उसे तमस का काल कहा।
कुछ ने मसान का विराम तो कुछ ने पुण्य प्रयाण कह दिया।
अभी अभी किसी ने उसे योगी कहा, तभी किसी और ने भोगी ..............
मुझे बताया गया कि वह संन्यासी है, पर उमा संग तो शायद गृहस्थ है !
कैलाश शिखर या रामेश्वर का तट कहाँ है, उसका निवास ?
काशी के कण में या फिर गंगा के जल में ........
कहीं तो रमता होगा ?
जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति ........ या तुरीय
क्या इनमें उसका अनुभव हैं ?
या वह कारण का भी कारण ......... महाकारण है !
शायद वह कला ..... पूर्णकला या मात्र बिंदु है.........
पर वह तो घोर - महाघोर - ........ ? या अघोर है !
डमरू का "डं" या मात्र "बं"
ताण्डव का क्वण
या समाधि का रण
मेरे शब्द
निःशब्द
🙏🙏 धन्यवाद सर जी,
ReplyDeleteसच में शिव अनंत और कल्पना से परे हैं।
अद्भुत अतुल्य रचना है
ReplyDelete