आचार्य शङ्कर और आचार्य रामानुज





आचार्य शङ्कर और आचार्य रामानुज 
अद्वैत और विशिष्टाद्वैत के राजसिंह 
श्रीमद्भगवद्गीता के महानतम भाष्यकार 
जनमानस के हृदय के ज्ञानांकुर को निरंतर 
पोषित-पुष्पित-पल्लवित
करता 
इनका एक एक विचार भारतवर्ष के ही नहीं 
अपितु मानव मात्र के अथवा यों कहें 
जीव मात्र के त्राण को निश्चित 
करता 
 धरा पर त्रिविध बयार की भांति 
जीव की चित्तभूमि को सम 
करता
अनुभवातीत 
तुरीय 
में 
उतरता 
है,

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