मृत्यु
ज्ञान का अभाव ही मृत्यु है। मृत्यु जीवन का वह अभाव है, जो पूर्णता को प्राप्त होकर ही रहेगा और हम जीवन भर इस अभाव को ढ़ोते रहना चाहते हैं। मृत्यु शाश्वत है, पर जीवन की अवहेलना का कारण है। मनुष्य जिस क्षण जन्म लेता है, उसी क्षण उसकी मृत्यु भी तय हो जाती है, या यों कहना ज्यादा सार्थक होगा कि देह को श्वास प्रश्वास की गति निश्चित ही प्राप्त होगी इस विश्वास में भले ही संशय हो, परन्तु यह देह निःश्वास होकर ही रहेगी इसमें कोई संशय नहीं।
मृत्यु अनन्त दुःख का साम्राज्य भले हो परन्तु देह को उसकी शासन व्यवस्था में रहना ही होगा, उसकी कर व्यवस्था के नियमों का पालन उसे करना ही होगा। अहो, नकारात्मकता उस राज्य का राजमार्ग, शोक उस राजमार्ग को आच्छादित किये वृक्ष, रुदन उसका बाज़ार, अश्रु पूर्ण सरोवर में सिसकियों के राजहंसों की क्रीड़ा। इन सभी के बीच देह को आरोग्य के धन से रोग का क्रय करना ही होगा।
मृत्यु में इतना सब कुछ भयावह होते हुए भी यदि कुछ सौन्दर्य शेष है तो. . . . . . . . . . . .
मृत्यु वह प्रियसी है, जिसके आलिंगन मात्र से देह को वह तृप्ति प्राप्त होती है, जिसके लिए देह जीवन भर प्रयास करता है, वह प्राप्ति जिसके बाद कुछ भी प्राप्त करने की इच्छा शेष नहीं रहती। उस कामिनी के मद भरे अंकों का स्पर्श नेत्रों के पूर्ण रूप से बंद होने तक मस्तक को सहलाता है। उसके रक्तिम होठों का प्रेम भरा स्पर्श देह रक्त की लालिमा को स्वयं में लीन कर सदैव के लिए श्वेत कर जाता है, उसके कोमल पग की धम - देह धमनी की धमक को शांत कर हृदय के सतत प्रयास को महाविश्राम में उलीच कर समभाव में स्थित कर जाती है। इन्द्रियों के अथक व्यापार को तब जाकर कहीं सही मूल्य मिल पाता जब इन्द्रिय जनित ज्ञान और कर्म को मृत्यु अपने उरोज में भर शून्य कर जाती है। मृत्यु की हर अठखेली पर देह की लुकाछुपी तब जाकर परिणाम को प्राप्त होती है, जब अचानक से वह बलखाती मृत्यु देह को पीछे से आकर यों जकड़ लेती है, मानो एक पुराने वृक्ष को एक नवीन लता ने न छोड़ने के प्रण से जकड़ा हो।
मृत्यु कभी न लांछित होने वाली प्रियसी, अपने प्रेमी को प्राप्त होगी ही भले ही उसका प्रेमी उसे छलने के सहस्त्र प्रयास करे, क्योंकि मृत्यु का प्रेम सत्य के धरातल पर अंकुरित होने वाला वह बीज है, जिसका रोपण तब तक होता रहेगा जब तक मोक्ष की अग्नि उसे दग्ध न कर दे।
ॐ तत् सत्
प्रणाम गुरु जी
ReplyDelete🙏
ज्ञान का अगाध समुद्र सन्मुख हो तो एक बूँद से तृप्ति क्या सम्भव है??
आदरणीय, आपके विचार तृप्ति भी प्रदान करते हैं और साथ ही साथ आगे आने वाले विचारों के स्वागत हेतु ज्ञान-पिपासा भी जाग्रत कर देते हैं|
प्रतीक्षारत.....
🙏