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मृत्यु

ज्ञान का अभाव ही मृत्यु है। मृत्यु जीवन का वह अभाव है, जो पूर्णता को प्राप्त होकर ही रहेगा और हम जीवन भर इस अभाव को ढ़ोते रहना चाहते हैं। मृत्यु शाश्वत है, पर जीवन की अवहेलना का कारण है। मनुष्य जिस क्षण जन्म लेता है, उसी क्षण उसकी मृत्यु भी तय हो जाती है, या यों कहना ज्यादा सार्थक होगा कि देह को श्वास प्रश्वास की गति निश्चित ही प्राप्त होगी इस विश्वास में भले ही संशय हो, परन्तु यह देह निःश्वास होकर ही रहेगी इसमें कोई संशय नहीं। मृत्यु अनन्त दुःख का साम्राज्य भले हो परन्तु देह को उसकी शासन व्यवस्था में रहना ही होगा, उसकी कर व्यवस्था के नियमों का पालन उसे करना ही होगा। अहो, नकारात्मकता उस राज्य का राजमार्ग, शोक उस राजमार्ग को आच्छादित किये वृक्ष,  रुदन उसका बाज़ार, अश्रु पूर्ण सरोवर में सिसकियों के राजहंसों की क्रीड़ा। इन सभी के बीच देह को आरोग्य के धन से रोग का क्रय करना ही होगा।  मृत्यु में इतना सब कुछ भयावह होते हुए भी यदि कुछ सौन्दर्य शेष है तो. . . . . . . . . . . .  मृत्यु वह प्रियसी है, जिसके आलिंगन मात्र से देह को...